सर्दियों में जब हम निकल पड़ेंगे
यात्रा करने रेल के नीले डिब्बे में
जिसमे होंगे सफ़ेद तकिये ,
निश्चिन्त और आरामदायक
जिसके हर मुलायम कोनों पर होंगे
चुम्बनों के अम्बार बिखरे हुए
तुम अपनी आँखे बंद कर लोगी
जिससे तुम खिडकी के बहार
नहीं देख पाओगी,
सांझ की उतरती परछाइयाँ,
वो रिरियाती भीड़ भाड़,या
धूर्त भेडिये या काले कुत्ते
अब तुम महसूस करोगी
तुम्हारे गालों पर खरोंचे
इक मखमली चुम्बन मानो,
एक मतवाली मकड़ी
तुम्हारी गर्दन पर फिसल गई हो
और तुम मुझसे कहोगी
अपना सिर पीछे झुकाकर
"ढूंढो उसे "
और मै उस जीव को ढूढने में
एक लंबा समय लगाऊंगा
जो इधर उधर बहुत भागता है