यह कविता ७ अक्टूबर २००६ की रात को हैदराबाद में लिखी गई थी ...कुछ घटनाएँ याद आ गई थी ......
नकाब से ये नकली चेहरे,
मानो बदलना इनका स्वभाव हैं
चाहे लाख लगाओ पहरे,
ये तो हैं बदलते चेहरे !
आडम्बरो से आच्छादित,
चालाकी से आनंदित
कहते इनको कलयुगी चेहरे,
ये तो हैं बदलते चेहरे !
विश्वास को पहुंचाते आघात,
करना होगा इनका प्रतिघात
कुटिलता से भरे चितेरे,
ये तो हैं बदलते चेहरे !
पल में अपने पल में पराये,
निज स्वार्थ सबकुछ कराये
लालच ह्रदय में भरे ,
ये तो हैं बदलते चेहरे !
विप्लव है अति आवश्यक,
परिवर्तन होगा तब्सर्थक
आघात करो इन पर करारे,
ये तो हैं बदलते चेहरे !