गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

नकली चेहरे

यह कविता  ७ अक्टूबर २००६  की रात को हैदराबाद में लिखी गई थी ...कुछ घटनाएँ याद आ गई थी ......

नकाब से ये नकली  चेहरे,
मानो बदलना इनका स्वभाव हैं
चाहे लाख लगाओ पहरे,
ये तो हैं बदलते चेहरे !

आडम्बरो से आच्छादित,
चालाकी से आनंदित 
कहते इनको कलयुगी चेहरे,
ये तो हैं बदलते चेहरे !

विश्वास  को पहुंचाते आघात,
करना होगा इनका प्रतिघात 
कुटिलता से भरे चितेरे,
ये तो हैं बदलते चेहरे !

पल में अपने  पल में पराये,
निज स्वार्थ सबकुछ कराये 
लालच ह्रदय  में भरे ,
ये तो हैं बदलते चेहरे !

विप्लव है अति आवश्यक,
परिवर्तन होगा तब्सर्थक 
आघात करो इन पर करारे,
ये तो हैं बदलते चेहरे !