अवचेतन में होने वाली उथल पुथल और वैचारिक ज्वार-भाटे की अभिव्यक्ति.. हमारे चारो और घटनाओं -परिघटनाओं का निरंतर एक क्रम चलता रहता हैं | एक सवेंदनशील जीव होने के नाते हम लोग इनसे जाने अनजाने प्रभावित होते रहते हैं | अभिव्यक्ति की चेतना ही वह अद्भुत नेमत हैं जो हम मनुष्यों को अन्य चराचरों से अलग करती हैं | इस ब्लाग के माध्यम से मेरा यह प्रयास हैं कि मैं अपने चेतन-अवचेतन द्वारा व्यक्त की जाने वाली अनुभूतियों को शब्द दे पाऊं
शनिवार, 10 नवंबर 2012
प्रियतमा
प्रिये तुम कितनी कोमल कितनी चंचल
आवाज़ तुम्हारी
कितनी सुरमई
देती मुझे प्रेरणा और हिम्मत हर पल
समीप रहती तुम सदैव मेरे मन के
छवि अमिट है तुम्हारी,
ह्रदय में मेरे
नहीं भूल सकता तुम्हे चाह कर के
वो क्षण, जब तुम रहती हो मेरे आसपास
सुंगंध तुम्हारे,
काले टेसुओं की
अविस्मृत कर देती मुझे तुम्हारी हर श्वास
प्रभावित होता हूँ मैं तुम्हारे व्यक्तित्व से
लगता हैं मानो
तुम हो साक्षात रति
आह्लादित होता मैं तुम्हारे लावण्य से
अपनी मोहक मुद्राओं से मदांध करती
बल खाती तुम्हारे
कटी बंध की रेखाएं
श्यामवर्णी लटें बलखाती आँचल पर लहराती
नयनो में छलकता विराट प्रेमसागर
पानी जिसका
जैसे हो कोई मदिरा
पाया प्रेम रत्न मैंने इसमे डूबकर
अभिलाषा मेरी हैं केवल इतनी प्रिये
अमिट रहे छवि तुम्हारी
ह्रदय में
आती रहन स्वप्न में इसलिए
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बेहतरीन रचना रविन्द्र भाई...कामना करता हूँ ये स्वप्न आपको बार बार आये :)
जवाब देंहटाएंकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअवलोकन और प्रशंसा के लिए धन्यवाद ....
जवाब देंहटाएंप्रत्युत्तर देने में विलम्ब हुआ इसके लिए खेद हैं