बुधवार, 7 नवंबर 2012

-:मदिरा :-


                     
 मदिरा वह द्रव है जो दवा होने का दवा करने के साथ साथ  सीधे अवचेतन याने Subconsciousness
पर आघात करती हैं | यह उस विश्व के होने का अति विश्वसनीय आभास देती हैं जो हमारे मस्तिष्क के रचनात्मक क्रियाशीलता का भाग नहीं होता ,इसी अवस्था को नशा या मद नाम से भी परिभाषित किया जा सकता हैं |  मदिरा पीने के पहले की स्थिति और फिर पीने के बाद की स्थितियों के अनुभवों को जैसा अनुभव किया उन्हें शब्दों के वस्त्रों में लपटने का प्रयास है यह कविता 


मद है जिसमे अटूट और जहरीला 
पीता इसको है फिर भी हटीला 
पीकर मनुष्य जिसको नहीं होता अकेला 
इस द्रव को कहते हम मदिरा 

दुःख ,पीड़ा को हरती और देती चैन 
पीकर इसको दमकते दोनों नैन 
व्यसनी मानते इसको अनमोल हीरा 
इस द्रव को हम कहते मदिरा  

जाम पे जाम पीते और छलकाते
मनुष्य अपनी बैचैनी भूल जाते 
लगता सरल पथ यदि हो पथरीला 
इस द्रव को हम कहते मदिरा   

अधरों की प्यास बुझती हैं 
कंठ को तर कर देती हैं
मस्तिष्क पर तो असर होता गहरा 
इस द्रव को हम कहते मदिरा  

प्रेमिका बन अधरों का चुम्बन लेती 
माता बन सिर को थपकाती
मित्र बन साथ हमारे लहराती 
इस द्रव को हम कहते मदिरा   

पीकर इसको बनता कोई दार्शनिक 
होता ये है मात्र  तात्क्षणिक 
उतरती है तो होता सब नाकारा
इस द्रव को हम कहते मदिरा  

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह रविन्द्र जी, मधु की समस्त परिभाषा कह डाली आपने. सत्य वचन है सारे.

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  2. निहार रंजन जी , उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद ....!!

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